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एक महीने में 15 साल बड़े दिखने लगे अरविंद केजरीवाल: सत्ता वापसी की जद्दोजहद!

“दिल्ली की सत्ता खोने के बाद अरविंद केजरीवाल पर उम्र का असर: अब पंजाब की सरकार पर नजर!”

दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी, 2025 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी सत्ता खो दी। अरविंद केजरीवाल, जो कभी दिल्ली की राजनीति के अजेय नेता माने जाते थे, अब सत्ता से बाहर होने के बाद न केवल राजनीतिक रूप से कमजोर दिख रहे हैं, बल्कि उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति भी चर्चा का विषय बन गई है। एक महीने के अंदर ही उनकी उम्र में 10-15 साल का असर दिखाई देने लगा है, और अब उनकी नजर पंजाब की सरकार पर है।

एक महीने में सब कुछ बदल गया

दिल्ली चुनावों में AAP की हार ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया। बीजेपी ने दिल्ली में सत्ता हासिल कर ली, और खुद अरविंद केजरीवाल अपनी सीट हार गए। यह हार न केवल राजनीतिक झटका थी, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुई। तस्वीरों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में देखा गया कि केजरीवाल पहले से कहीं अधिक थके और उम्रदराज लग रहे हैं।

अरविंद केजरीवाल

पंजाब पर नजर: सत्ता में वापसी की कोशिश?

दिल्ली की सत्ता खोने के बाद अब अरविंद केजरीवाल पंजाब पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पंजाब अभी भी AAP के नियंत्रण में है, और ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वह खुद को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने की योजना बना रहे हैं। चर्चा है कि लुधियाना में एक उपचुनाव करवाकर वह पंजाब विधानसभा में प्रवेश करने की कोशिश कर सकते हैं।

हालांकि, यह रणनीति आसान नहीं होगी। AAP की पंजाब इकाई में अंदरूनी कलह और असंतोष बढ़ रहा है। कांग्रेस नेताओं ने दावा किया है कि पंजाब में मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं क्योंकि AAP विधायकों में असंतोष बढ़ रहा है।

हार का मानसिक प्रभाव

केजरीवाल हाल ही में पंजाब में 10 दिनों के विपश्यना ध्यान शिविर में गए थे, जो उनके मानसिक तनाव को दर्शाता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह उनका व्यक्तिगत ब्रेक था, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह उनके अगले राजनीतिक कदम की तैयारी हो सकती है।

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भविष्य क्या होगा?

अरविंद केजरीवाल की तेजी से बढ़ती उम्र और सत्ता पाने की कोशिशें केवल उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को नहीं दिखातीं, बल्कि यह AAP पार्टी के सामने खड़ी चुनौतियों को भी उजागर करती हैं। एक समय देश में वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक मानी जाने वाली पार्टी अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिकता खोती नजर आ रही है।

क्या केजरीवाल खुद को और अपनी पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएंगे? या यह उनके राजनीतिक करियर का अंत साबित होगा? समय ही बताएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनकी सत्ता से संघर्ष की कहानी भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण सबक बनकर उभर रही है।

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